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भय बिन होय न प्रीत।

amritvani
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नक्‍सलियों के द्धारा बार-बार निर्द्धोष लोगों की हत्‍या की जा रही है। पूरा देश उनके मान मनब्‍बल में लगा है कि भइया हमसे कुछ गलतियॉं हो गयीं,हमें जितना ध्‍यान तुम्‍हारे विकास पर लगाना चाहिये था,उतना ध्‍यान हम तुम पर नहीं दे पाये।देश के ग्रहमंत्री इस तरह अपनी गलती स्‍वीकार कर चुके हैं। लेकिन नक्‍सलियों ने अब नाक में दम कर दिया है। नक्‍सलियों के इरादों को नेक मानना अब बहुत बडी वैचारिक भूल साबित हो रही है।अब हमें यह मानना पडेगा क‍ि बिना भय के नक्‍सलियों से प्रीति नहीं की जा सकती। यदि नक्‍सलियों के इरादे वाकइ नेक हैं तो बातचीत के सरकार के प्रस्‍ताव को उन्‍हें स्‍वीकार कर लेना चाहिये था। उन्‍हे बताना चाहिये था कि सरकारों से कहॉं गलतियॉं हुयीं हैं एवं उनकी भरपायी के क्‍या तरीके हैं।इसके स्‍थन पर वे लोगों की दनादन हत्‍या करने में लगे हैं।स्‍कूलों पर हमला करना,सामुदायिक केन्‍द्रों पर हमला,ट्रेनों पर हमला करने का मतलब साफ है कि वे जिस डाल पर बैठ कर वच‍िंतो के हितेषी होने का राग गा रहे थे,वे उसी को काटने में लगें हैं।उन्‍हें रोते हुये अनाथ बच्‍चों की चीख,विधवाओं का क्रंदन सुनाइ नहीं दे रहा है।नक्‍सली अब अपने लोंगों के खिलाफ लडाइ लडने लगे हैं।लगता है शायद लडते लडते हुये अपने खत्‍म होने की तैयारी में लग गये हैं।क्‍या ज‍िन लोगों की वे हत्‍या कर रहें हैं उनकी शक्‍ल व अस्‍ल नक्‍सलियों से भिन्‍न दिखाइ देती है।क्‍या जिन आमजन व सुरक्षाकर्मीयों को उन्‍होंने मारा है उनकी सामाजिक ‍व आथ‍िर्क दशा नक्‍सलियों से भिन्‍न है।।इसका जबाब वास्‍तविक आदोंलनकारी ही दे सकता था।
अब नक्‍सलीयों के दुष्‍क्रत्‍यों की पराकाष्‍ठा हो चुकी है। अब इसका एक ही इलाज बचा है वो यह कि इनके विरूद्ध रणनीति अपनाकर सघन सैनिक कार्यवाही की जाय। साथ ही साथ स्‍थानीय लागो का सहयोग प्राप्‍त करके उन्‍हें यह समझाय जाय कि उनके हितों का पोषण केवल लोकतात्रिक तरीके से हो सकता है।उनके मॉं, मानुष, व माटी के अधिकारों का पुनरजीवित किया जाय।यह काम नेटिव लोंगों के सहयोग से इमानदारी के साथ मिशन रूप मे किया जाय। यह काम ब्‍यूरोक्रेटिक स्‍टाइल में करने की रिस्‍क नहीं ली जाय।
तभी हिसक होते जारहे नक्‍सलियों के विरूद्ध लडाइ जीती जा सकती है। इतिहास इस बात का गवाह है कि जब दमनकारी नीतियॉं अपनाने वाला राज्‍य या हिंसा को लक्ष्‍य मानने वाले कोइ संगठन ज्‍यादा दिन नहीं टिकता। उसकी अपनी हरकतें लोगों में आक्रोश पैदा करती है,एवम लोग मौका पाते ही एकजुट होकर उसे उखाड फेंकते हैं।मेरा विचार है कि यही वो माकूल समय है,जब क्रूर हाते नक्‍सलियों पर हमला बोला जाय। लोहा इस समय गरम है,इस पर कारगर चोट करके इसे सकारात्‍मक रूप से मुख्‍य धारा से जोडा जा सकता है।
नक्‍सलियों का दुस्‍साहस तो देखिये कि वे अब अफजल गुरू को अपना हीरो बताने में शान समझ रहे हैं। इसका मतलब साफ समझ में आता है कि अभी नक्‍सलियों के द्धारा खून-खराबा और किया जायेगा। उन्‍हें विदेशी आतंकवादी संगठनों से मदद प्राप्‍त होगी। सरकारों को आपसी तालमेल से राजनैतिक लाभ को दरकिनार करते हुये नक्‍सलियों के सफाये में सहयोग करना चाहिये।अब थोथी बयानबाजी से काम चलने वाला नहीं है।

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