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दंतेवाडा में नक्सलियों ने जाबांज सैनिकों को मारकर अक्षम्य गुनाह किया है। यह कतइ माफी के लायक नहीं है। पूरा देश इस घटना से स्तब्ध है।आखिर कोइ भी जिम्मेदार नागरिक इस प्रकार की हिंसा का कतइ समर्थन नहीं कर सकता।लेकिन क्या यह जायज बात है कि जैसे ही नक्सलियों के बारे में कोइ शब्द मुंह से निकले कि शेष बात को अपने हिसाब से पूरी कर अपने अनुकूल अर्थ निकालें। देश में इस समय छदम बौद्धिक वर्ग अपने विरोधी लेखकों कों जेल भेजने की फिराक में हैं। इनका मानना है कि नक्सलियों पर मुंह खोलना 1857 की क्रान्ति के देशी दुश्मनों के समान है। क्या नक्सली समस्या का विश्लेषण करना गुनाह है।आखर लेखन में समालोचना का कोइ महत्व है। यह वह तटस्थ मूल्य है जो आपको इमानदार एवं निरपेक्ष रूप से संवेदनशील बनाये रखता है। यह काम आसान नहीं है। दुर्भाग्य देखिये ऐसे तथाकथति देशभक्त ,लेखन में भी अपनी पार्टी बना लेते हैं। ये एक दूसरे की बात का समर्थन करतें हैं।ये अपने खमे के अलावा अन्य को तुच्छ एवं निर्क्रष्ट समझतें हैं। मीडिया की मजबूरी यह है कि उनका व्यवसाय पाठकों एवं दर्शकों पर निर्भर है।
जब देश के केन्द्रीय मंत्री यह बात स्वीकार चुकें है कि नक्सली क्षेत्रों मे विकास कार्यों का अभाव रहा है।इसी कारण नक्सलियों को यहॉ जडें जमाना आसान रहा है। इसी से आगे की व्यवाहरिक सच्चाइ यह है,जिसे आप सुनना नहीं चाहते।वो यह कि आप विकास के लिये धनराशि उपलब्ध कराना ही जिम्मेदारी समझते हैं। यह पैसा जरूरतमंदो के हाथों में पहुचे,यह भी उतना ही जरूरी है। आप कह सकते हैं कि नक्सली विकास कार्यो को नहीं हाने देते। वे लेवी की वसूली, अपहरण व हत्या का भय पैदा करते हैं। तो मैं आपको कुलदीप नैयर साहब के हवाले से बताना चाहता हूँ,उन्होने लिखा है कि दो किसानों की जमीन किस प्रकार हडपी गयी,उसमें से एक अपनी नौकरी छोडकर जमीन पर कब्जे के लिये संघर्ष कर रहा है। इससे आगे का एक कडुआ सच यह भी है कि इन क्षेत्रों में सरकारी कमीशन की कोइ गुजांइस नहीं रहती।
दूसरे लेखकों को देशद्रोही साबित करने वाले बौद्धिक आतंकवादियों से यह और पूछना चाहता हूँ कि दंतेवाडा की घटना में मारे गये परिवारों को सरकारी मुआवजे के लिये किस हद तक सर्घष करना पडेगा,इसका अन्दाजा है ,आपको। याद है,बरेली में करगिल शहीद की मॉ ने इच्छा म्रत्यु की मॉंग की है। आप जानबूझकर असंतोष की जमीन तैयार होने में मदद करतें हैं। आप संसाधनों की जमाखोरी करने वालों से यह कहने की हिम्मत नहीं करेंगें कि अभावग्रस्त लोंगों को आपसे ज्यादा जरूरत है। इसकी पैरोकारी बडे जोर शोर से की जा रही है कि नक्सली समस्या से निपटने के लिये एटम बम से हमला कर दो। उनके बारे में कुछभी बोलने वालों कों जेल में ठूंस दो।
मेरे एक मित्र लेखक इस शंका से ग्रस्त थ्ो कि यह दौर आधुनिक पूजीवादी लेखकों का है,जो अपनी बात को ही जायज मानतें हैं। ये वही लोग हैं जो बाबा रामदेव को भी नहीं बख्सते हैं। क्योंकि बाबा के योग के कारण लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुयें हैं,अन्यथा नकली व महॅगी दवाओं के कारण मरने के लिये मजबूर हैं। मैं दावे से कह सकता हूँ कि ये ऐसे लोग हैं जो बापू के समय यदि होते तो उन्हें गॉंधी नहीं बनने देते।
ऐसे बडे लेखकों से मेरा अनुरोध है कि वे यह न समझें कि असली देशभक्त आप ही हैं। आपसे ज्यादा इस देश पर गौरव हमें भी हैं। हम इस बात का विरोध करते हैं कि कोइ इस देश में बन्दूक के बल पर तख्ता पलटने का सपना देखे,लेकिन हमें यह तय करना भी जरूरी है कि इस देश का संविधान सबको समान मौलिक अधिकारों की व्यवस्था करता है।
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