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खेलने कूदने के दिनों में कोई बालक श्रम करने को मजबूर हो जाय तो इससे बडी विडम्बना समाज के लिए हो नहीं सकती । बाल श्रम एक ऐसा सामाजिक अभिशाप है जो शहरो में, गॉव में चारों तरफ मकडजाल की तरह बचपन को अपने आगोश में लिए हुए है । बाल श्रम से परिवारों को आय स्रोतों का केवल एक रेशा प्राप्त होता है जिसके लिए गरीब अपने बच्चों के भविष्य को इस गर्त में झोक देते है । क्राई (cry) नामक गैरसरकारी संस्था बाल श्रम के निराकरण हेत बच्चों में स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिक्षा एवं पोषण प्रदान करने के लिए प्रयासरत है । वास्तव में बाल श्रम मानवाधिकारों का हनन है। मानवाधिकारों के तहत शारीरिक, मानसिक, सामाजिक विकास का हक पाने का अधिकार प्रत्येक बालक को है । यह जानकर और आश्चर्य होता है कि खनन उद्योग, निर्माण उद्योगों के साथ साथ्ा कृषि क्षेत्र भी ऐसा क्षेत्र है, जहॉं अधिकाधिक बच्चे मजदूरी करते हुए देखे जाते है । इन बच्चों को पगार के रूप में मेहनताना भी आधा दिया जाता है । ऐसा नहीं है कि बाल श्रम के निराकरण के लिए सरकारें चिन्तित न हों, लेकिन यह चिन्ता समाधान में कितनी सहयोगी साबित हुई है । यह मूल्याकंन का विषय है । इस समय उत्तर प्रदेश में 2001 की जनगणना के आधार पर 1927997 बाल श्रमिक चिन्हित किये गये है । और इसके एबज में सरकार ने 10बी पंचवर्षीय योजना में 602 करोड रूपया आवंटित किये है । जबकि नवीं योजना में 178 करोड रूपये खर्च किये गये थे । सरकार ने बालश्रम कानून-1986 के अन्तर्गत ऐसे क्षेत्रों को चुना है जहॉ अधिक संख्या में बाल मजदूर रह रहें हो एवं जो हानिकारक उद्योगों में काम कर रहें हो । सरकार ने लगभग देश के 250 जिलों में राष्ट्रीय बाल श्रम प्रोजेक्ट के द्वारा तथा 21 जिलों में इण्डस प्रोजेक्ट के द्वारा जिलाधिकारियों को आदेश दे रखें है कि वे बालश्रम को दूर करने के लिए हरसम्भव प्रयास करें । इसके लिए विशेष स्कूल संचालित किये जाये, बालश्रमिकों के परिवारों हेतु आर्थिक सहायता उपलब्ध करायी जाये एवं 18 वर्ष के पूर्व किसी भी दशा में उनसे मजदूरी न करायी जाये । इस सम्बन्ध में 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने भी श्रम विभाग को यह आदेश दिया है कि बच्चो को सामान्य कार्यो में 6 घण्टे से अधिक न लगाया जाये । उन्हें निर्धारित अवकाश के साथ्ा कम से कम दो घण्टे जरूर पढाया जाये । यदि नियोजक ऐसे आदेशों की लापरवाही करें तो उस पर कम से कम 20000 रूपये का जुर्माना लगाया जाये, जो बच्चे के भविष्य के लिए उपयोग किया जाये । अब आप जरा देखिये कि सरकार, सुप्रीम कोर्ट, जागरूक जनता के प्रयासों के बावजूद पूरे देश में 58962 नियोजकों के विरूद्ध बालश्रम कराने के लिए मुकदमे दायर किये गये है । उत्तर प्रदेश में ऐसे अभियोग 6885 है ।
हम यह भूल जाते है कि सब कुछ कानूनों एवं सजा से सुधार हो जायेगा लेकिन यह असम्भव है । हमारे घरों में, ढावों मे, होटलों में अनेक बाल मजदूर मिल जायेंगे, जो कडाके की ठण्ड या तपती धूप की परवाह किये वगैर काम करते है। लेबर आफिस या रेलवे स्टेशन के बाहर इन कार्यालयों में चाय पहुचाने का काम यह छोटे छोटे हाथ ही करते है और मालिक की गालियॉ भी खाते है । सभ्य होते समाज में यह अभिषाप क्यों बरकरार है, क्यों तथाकथित अच्छे परिवारों में नौकरों के रूप में छोटे बच्चों को पसन्द किया जाता है । आप यह अक्सर पायेंगे कि आर्थिक रूप से सशक्त होती हुई महिला को अपने बच्चें खिलाने एवं घर के कामकाज हेतु गरीब एवं गॉव के बाल श्रमिक ही पसन्द आते है । इन छोटे श्रमिकों की मजबूरी समझिए कि इनके छोटे छोटे कंधों पर बिखरे हुए परिवारों के बडे बोझ है ।
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