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सरकार, आत्‍महत्‍या करते किसानों का बचाइयें ।

amritvani
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महात्‍मा गॉधी के इस देश में हमारे जीने के लिए खाद्यान्‍न की व्‍यवस्‍था किसानों द्वारा होती है । करने को तो आप विदेशों से मंहगे दामों पर खाद्यान्‍न आयात कर सकते है । ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था में अप्रैल एवं मई के महीने बहुत महत्‍वपूर्ण होते है क्‍योंकि इन महिनों में गेहूं एवं जौ की लहलहाती फसल किसानों के घर में रौनक ला देती है । लेकिन दुर्भाग्‍य देखिए, कि विगत दस दिनों में विदर्भ के 30 किसानों ने आत्‍महत्‍या कर ली है । क्‍या हमें थोडी बहुत शर्म बाकी है कि जो किसान हमारे लिए दिन रात मेहनत करके दाना पानी उपलब्‍ध कराता हो वह सूदखोर महाजनों एवं बैंकों के ऋण जाल में इस कदर फस जाये कि उसे इससे निकलने का, मौत के सिवाय कोई रास्‍ता ही दिखायी न दे । नक्‍सलियों से निपटने की रणनीति में हम स्‍थानीय निवासियों से यह दरखास्‍त करते है कि वे नक्‍‍सलियों की कोई मदद न करें । मेरे सरकार यह तय है कि यदि पेट में रोटी न होगी एवं कर्ज तकादा करने वाले बैंक कानूनी नोटिस भेजेंगे, तो आप स्‍थानीय निवासियों से कैसे उम्‍मीद करते है कि वे किसी स्‍थानीय नक्‍सली या उग्रवादी की कोई मदद न करें । और वे मदद करते भी कहॉ है, वे तो अपनी जान बचाने के लिए केवल चुप रहने में भलाई समझते है ।क्‍या ऋण तकादा करने वाले बैंक एवं सूदखोर महाजनों से प्रशासनिक तरीके से यह नहीं कहा जा सकता कि यदि फसल तकनीकी कारणवश बरवाद हो जाती है तो वे फसलों का मुआयना करके कुछ राशि या समय की मोहलत तो दे ही सकते है । आपके फसल बीमा का क्‍या होता है, वह किस लिए देय होता है इस पर विचार करने वाला कोई है । संवेदनहीनता की हद तो तब और हो जाती है जब देश में चैत एवं बैशाख के महीने में ( किसानों के लिए यह सबसे खुशहाल महीने होते है) देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में गरीब किसान आत्‍महत्‍या कर लेते है । समाचारों में उन आत्‍महत्‍या के कारणों को गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी कुछ भी बताया जा सकता है । और सरकार की हिम्‍मत देखिए कि भूख से हुई मौत को या तो बीमारी या आत्‍महत्‍या का कारण बताकर मुंह मोड लिया जाता है । सरकार क्‍या ऐसा नहीं कर सकती कि यदि किसी भी किसान ने फसल बरबाद होने या अन्‍य किसी कारण से आत्‍महत्‍या की तो सम्‍बन्धित शासकीय विभाग या प्रत्‍यक्ष तौर जिलाधिकारी जिम्‍मेदार होगें ।यदि किसी क्षेत्र में फसले बरवाद हो रही है तो कोई सर्वे या शासकीय अवलोकन क्‍यों नहीं किया जाता । स्‍थानीय सरकारी अधिकारियों की लम्‍बी चौडी फौज आखिर करती क्‍या है । कृषि अधिकारी, राजस्‍व अधिकारियों को यदि अपने वृहद क्षेत्रों पर नजर रखने में कठिनाई है तो अन्‍य समस्‍त सरकारी अमला प्रशिक्षण दिये जाने के बाद किसानों की मदद कर सकता है। लेकिन ऐसी रणनीति बनाने की पहल एवं हिम्‍मत कौन करेगा । हमें करना तो यह चाहिए कि नौकरशाही को यह निर्देश दिये जाये कि जबतक किसानों की समस्‍याएं नहीं निपटती तबतक वे स्‍थानीय क्षेत्रों में ही निवास करेंगे । गॉव का दूरदराज से किराया खर्च करके किसान जिला मुख्‍यालय पर जबतक पहुंच पाता है, तबतक साहब का लंच टाइम हो चुका होता है । और यदि दो से ज्‍यादा अधिकारियों से मिलना पडा तब उसका पूरा दिन व्‍यर्थ हो जाता है । आखिर इस देश में इतनी समस्‍याएं है लेकिन सरकारी नौकर केवल आठ घण्‍टे की डियूटी करके मोटी तनख्‍वाह लेना एवं पेपरवर्क करना ही अपनी डियूटी समझते है । अगर इस देश की आत्‍मा गॉव में बसती है तो आत्‍मविहीन होते इस देश को मृत करने में सबसे ज्‍यादा जिम्‍मेदारी सरकारों की होगी । अत: मुझे यह कहना है कि मेरे सरकार देश में आत्‍महत्‍या करते किसानों पर सबसे पहले विचार करिए और उन्‍हें मरने से बचाइये ।

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