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इस समय सुप्रीम कोर्ट का लिविंग टुगेदर के सम्बन्ध में हालिया निर्णय बहस का विषय बना हुआ है । निर्णय में कहा गया है कि भगवान कृष्ण ने भी ‘बिन फेरे हम तेरे’ की तरह राधा के साथ जीवन जिया था । नि:सन्देह इसमें कोई शक नहीं है कि कोई भी बालिग किसी के भी साथ रहने के लिए स्वतन्त्र है । इस समय बदलती अर्थव्यवस्था, नौकरियों का बदलता स्वरूप, महिलाओं का स्वावलम्बन प्राप्त करना उपरोक्त तर्क को मजबूत करता है । जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने लिविंग टुगेदर के सम्बन्ध में निर्णय दिया उसी दिन एक समाचार और प्रकाशित हुआ था कि बिहार में लबगुरू नाम से मशहूर प्रोफेसर मटुकनाथ व उनकी शिष्या के लिए राहत प्रदान करने वाली रिट याचिका सम्बन्धित न्यायालय ने खारिज कर दी । आखिर प्रोफेसर मटुकनाथ की शिष्या ने भी सारे जहॉ के सामने प्यार की स्वीकारोक्ति की थी । इस प्रकार मुझे नहीं लगता कि न्यायालय के निर्णय के अन्तर्गत लबगुरू दोषी है । यदि उनकी वैधानिक पत्नी को इसमें दोष दिखाई दे तो इसे क्या कहा जाय । वास्तविकता यह है कि लम्बे समय से यौनशिक्षा के समर्थक भी ऐसे किसी कानूनी सहारे की जरूरत महसूस कर रहे थे । ऐसे समर्थकों को मानना है कि स्कूल कालेजों में यौन शिक्षा अवश्य दी जाय एवं छात्रों को बताया जाय कि सैक्स करने के लिए वह स्वतन्त्र है वशर्ते कि वह सुरक्षित तरीके से किया जाय । एड्स से बचाव के तरीकों में भी कुछ इसी प्रकार की जागरूकता पैदा करने की कोशिश की जाती है । बच्चे स्कूल में पढें हुए पाठ को ”आओ विज्ञान करके सीखें” की जुगत में पड जाय, तो इसमें समर्थकों को कोई बुराई दिखायी नहीं देती ।भारत में वैसे ही इस समय महिला पुरूष का अनुपात 927/1000 है ऐसे में ऐसी शिक्षा क्या गुल खिलायेगी, अनुमान लगाया जा सकता है । मुझे ऐसा लगता है कि मीडिया का बहुत बडा वर्ग, तथाकथित विशेष बौद्धिक वर्ग, अंग्रेजी पब्लिक स्कूल यौन शिक्षा के समर्थकों के साथ खडे हुए है । निश्चित रूप से यह तय है कि लिविंग टुगेदर संस्कृति यौन शिक्षा दिये जाने का अगला कदम होगी या यौन शिक्षा दिया जाना सीलिविंग टुगेदर को बढावा देगा । दोनों चीजों एक ही सिक्के के दो पहलू है । यह दोनों चीजों भारतीय समाज के ”विवाह एवं परिवार” नामक संस्था को पुर्नपरिभाषित करेंगे या ये कहें कि इन्हें तोडकर ही दम लेंगे, गलत नहीं होगा । भारतीय हिन्दू विवाह एवं परिवार का आधार ही समर्पित एवं नियमबद्ध शारीरिक सम्बन्धों के साथ बच्चों को संरक्षण प्रदान करना है । लेकिन पता नहीं भविष्य के गर्त में यह संस्थाएं अपना बजूद रख पायेंगी या नहीं । वैसे कहा यह जाता है कि प्रकृति उल्टे को उलट कर सीधा एव सन्तुलित अवश्य कर देती है, तो यह आशा अवश्य है कि हो सकता है कि कुछ समय के लिए यौन शिक्षा के समर्थक भारी पडे लेकिन अपसंस्कृति का अस्तित्व ज्यादा दिन नहीं रहेगा ।
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