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1991 में उदारीकरण नाम की जो पिक्चर प्रारम्भ हुई थी उसके परिणाम एवं बाकी हिस्सों के बारे में विचार करना बहुत जरूरी है । उदारीकरण की कहानी के हीरो मा0 मनमोहन सिंह है । यह बिल्कुल सच है कि 1991 के आते-आते देश में विदेशी मुद्रा का भण्डार न के बराबर था यानि कि विदेशों में हमारी मुद्रा की साख बहुत खराब थी । हमसे कोई व्यापार करने को तैयार नहीं था । फिर धीमे-धीमे विश्वव्यापार संगठन के माध्यम से ”ग्लोबलाइजेशन” की शुरूआत हुई । ग्लोबलाइजेशन में विश्व के अधिकांश देश ऐसी आर्थिक नीतियों से जुड गये जो एक दूसरे के बाजारों में मुक्त व्यापार करने में आधारित थी । मा0 मनमोहन सिंह जी के वित्त मंत्री रहते हुए हमने काफी विदेशी मुद्रा अर्जित की और यह मान लिया कि हम अपने ईमान व योग्यता से और अधिक विश्व व्यापार में और अधिक मजबूत होते जायेंगे । हमने तमाम विदेशी कम्पनियों को अपने यहॉ निवेश करने का न्यौता दिया । लेकिन कि जैसा कि सामान्य तौर पर होता है, हम सावधान नहीं रहें । तमाम विदेशी कम्पनियों ने हमारे यहॉ आधारभूत संरचना में निवेश नहीं किया बल्कि वस्तुगत व्यापार में ही रूचि रखी । हमारे यहॉ जो आय के स्रोत बढे उनका अधिंकाश हिस्सा चन्द हाथो में सिमट कर रह गया । होना यह चाहिए था कि सबसे निचले पायेदान पर खडा आदमी औद्योगीकरण एवं उदारवाद का लाभ प्राप्त कर पाता । उसे उचित स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा एवं रोजगार के साधन मिलने चाहिए थे ताकि वह स्वयं अपने लिए एक आशियाने की व्यवस्था कर पाता । लेकिन हुआ क्या । पिक्चर के बाकी हिस्से पर जरा गौर करिये, हमारा समाज आर्थिक विकास की अंध दौड में गला काट प्रतियोगिता में उलझ कर रह गया है । आप जिस सर्विस सैक्टर की ग्रोथ पर घमंड कर सकते है, उस सेवा के बहाने व्यापार ने रिस्तो को तार-तार कर दिया है । आम आदमी यह रोते मिलता है कि दलाल संस्कृति को सर्विस सैक्टर के नाम पर बढावा दिया जा रहा है । ग्रामीण परिवेश में अभी भी गरीबी इतनी है कि देश में लगभग 12 करोड लोग आठ रूपये प्रतिदिन पर गुजारा कर रहे है और देश में अठठाइस प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे है । हमारा दिमाग यह सोच कर चकरा जाता है कि यह गरीब कभी भी कानून व्यवस्था एवं समाज के लिए भय की चुनौती बन सकते है । नक्सलवाद इस समय केन्द्र सरकार को यह मैसिज दे चुका है । यानि कि पिक्चर के बाकी हिस्से में हिंसा, भय, अपराध, वर्गविभेद, आय की विषमता, गरीबी, बेरोजगारी अवश्य दिखायी देगी । ऐसा नहीं है कि हमारे देश में अमीरी नहीं बढ रही, बल्कि आप कह सकते है कि हम अब सुविधाओ से सबसे अधिक सुसज्जित है । हमारे उपभोग के दायरे इतने बढ गये है कि आवश्यकता के आगे हमारे आय के साधन छोटे पड जाते है और फिर हमारी मजबूरी होती है कि हम अधिक से अधिक किसी भी स्रोत से इनकम करें । आप इसे भ्रष्टाचार का नाम दे सकते है लेकिन उदारीकरण की पिक्चर में भ्रष्टाचार नाम का यह विलेन हमारे प्रत्येक के दिमाग में छिपा बैठा है । इसीलिए सैमीनार, गोष्ठियों एवं बैठकों में नैतिकता की बात करते हुए बाहर निकलते है लेकिन हमारी राते शराब एवं मौजमस्ती के शौक में गुजारी जाती है । (हालांकि यह बात सब पर लागू नही होती ) लेकिन आप यह मानेंगे कि गॉव में जिन लोगों की दैनिक इनकम न के बराबर है या जिनकी कमाई नरेगा जैसी योजनाओं से होती है वे अधिकांश लोग शराब के शौकीन है । गॉव के गॉव शराब की गिरफत में है । ऐसी दशा में परिवार कैसे बचे रह सकते है, वहॉ पोस्ट मेरिटल रिलेशन को टी0वी0 एवं सी0डी0 ने काफी हद तक बढावा दिया है । अब आप यह न चिल्लाइये कि टी0वी0 लोगों को समाचारों के साथ मनोरंजन एव जागरूक भी करती है और इसका मतलब यह भी नहीं है कि प्रत्येक घर में से टी0वी0 को निकाल कर फैंक दे । यदि आप में हिम्मत है तो इतना तो कर सकते है कि प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में फूहडता एवं अशलीलता न हो । मुझे नहीं लगता कि कोई शरीफ आदमी अपनी मॉ व बहन के साथ टी0वी0 का आनन्द ले सकता है । तो उदारीकरण की पिक्चर के ये जरूरी हिस्से है । इसमें महिलाओं को उपभोग की वस्तु समझकर उपयोग किया जायेगा । बेरोजगारी के साथ साथ ठेकेदारी की संस्कृति बढेगी । एक तरफ लोगों की परेशानियॉ होंगी जिनके समाधान में सरकारें सामाजिक सुरक्षा के नाम पर तमाम पेंशन आदि उपलब्ध करायेंगी । करों का बोझ निश्चित रूप से बढेगा ही। मिलावटखोरी बढेगी ही क्योंकि बढती जनसंख्या के लिए खाद्य की समस्या बनी रहेगी । उपजाऊ भूमि के टुकडे होंगे, सीमान्त कृषक मजदूरों में तब्दील हो जायेंगे । अधिकांश किसान शहरी सुविधाओं के लिए पलायन करेंगे एवं अपनी जमीनें बेचकर सरकारी नौकरी प्राप्त करने की कोशिश करेंगे । महानगरों में स्लम संस्कृति बढेगी । एक बात और भी बयान करनी जरूरी है कि आदिवासियों के लिए बने वन कानून उन्हें बरबाद कर देंगे । टर्मिनेटेड बीजों के द्वारा की गयी फसल किसानों को तबाह कर देगी । वे दिनों दिन आत्महत्या करने के लिए मजबूर होंगे । अब आप यह न समझे कि पिक्चर के बाकी हिस्से को सोचकर में फिजूल विलाप कर रहा हूं । आप चाहे तो खुश हो सकते है कि हमारे देश में विश्व के अमीरतम लोगों में से तीन यहीं के निवासी है ।
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